Sunday, September 27, 2020

आदमी

बड़ी अजीब 
कौम
है 
ये।
जानवर बोलो 
तो 
नाराज, 
शेर बोलो 
तो 
लाजवाब 
है
ये।

Wednesday, September 16, 2020

माफी चाहता हूं

आज हिंदी दिवस है. व्हाट्सएप और फेसबुक संदेशों से लबालब भरे हुए हैं.
हिंदी पर लोगों का गर्व आज उमड़ घुमड़ कर मर मिटने को तैयार है.
कभी-कभी लगता है कि हम लोग गर्व की जगह अभिमान की अभिव्यक्ति करते हैं.
गर्व का आधार ज्ञान है.अभिमान का तो कोई आधार ही नहीं है. वह तो हवा पर तशरीफ़ फरमाता है. ज्यादा हवा से चलती गाड़ी और उसमें सवार जिंदगी को,कम हवा की बनिस्पत ज्यादा खतरा है. तो आइए लगे हाथ कुछ हवा कम करते हैं और अभिमान को गर्व तक सीमित करते हैं.
फारसी,उर्दू और अंग्रेजी के बाद हिंदी शासकीय भाषा बनी. शासन बदला भाषा बदली अतः गर्व भाषा का नहीं शासन से संबंधित था.
आज छोटे-छोटे बच्चे जो शानदार हिंदी के वाक्यों को को बोलकर मां बाप को चकित कर रहे हैं ना, उसका श्रेय आप की सरकारों और हिन्दी लेखको को नहीं बल्कि पसंदीदा कार्टूंस को बेहतरीन आम बोलचाल की भाषा में डब करने को जाता है.
थलाइवा,अन्ना,तंबी, वानक्कम इत्यादि से हिंदी भाषी लोगों की जो हेलो हेलो हुई है ना, उसका श्रेय साहित्य में हीन दर्जे पर माने जाने वाली हिंदी व्यवसायिक फिल्मों को जाता है.
बाल्मीकि रामायण का पहला अनुवाद हिंदी में नहीं हुआ था. यह असमि मे माधव कांदिली रामायण थी. इसकी रचना 14वी शताब्दी में हुई थी. तुलसीदास की रामचरितमानस कई शताब्दियों बात लिखी गई थी.
भाषा को सरल, सहज, सुलभ बनने दें. सर्वग्रही बने, कुएं के मेंढक नहीं. गर्व तक तो ठीक है, मगर उन्माद नहीं. भाषा को थोपिए नहीं पानी जैसे बहने दीजिए, रास्ता खुद-ब-खुद बनता चला जाएगा. 
अपनत्व का भाव दीजिए सारी देसी भाषाएं हमारी अपनी हैं. दक्षिण,पश्चिम और पूर्वी भाषाओं का साहित्य सर्जन कहीं भी हिंदी से कम नहीं है. पंजाबी भाषा सूफी साहित्य की खान है.
दिल दुखा हो तो माफी चाहता हूं.