Friday, November 2, 2007

ISHWAR

hello everyone...

jab ham paida hue sab se pehley hamrey kaan mai jo shaabd aye woo they "bhagwa/allah/god " ham tabhee se condition hote chale gaye,BHAGWAN ke es concept se.

KYA Bhagwan/God/Allah exist kartey hai yaan sirf concept hee exist kartey hai....

KYA ham sab ek pre-programed system ke tareh he es concept follow karet hai.....

This quest took me to Bhagat Singh "y i'm ans athist" a very logical/rational monograph....by a young man at the age of 22

at the same time Osho deals this issue at the ground of philosophy.

everyone here welcome ro contribute views....

This articale is written by famous urdu poet NIDA FAZALI

इंसानों की दुनिया में इंसानों ने ईश्वर को खोज निकाला. इसलिए कि उसे एक तराजू की तरह इस्तेमाल किया जा सके.
उसके माध्यम से अच्छाई-बुराई को तोला जा सके और यह बताया जा सके कि समाज में कौन सच के रास्ते पर चल रहा है और कौन झूठ के रास्ते में बदल रहा है.
ईश्वर की खोज जंगल को बस्ती बनाने के लिए ज़रूरी थी, लेकिन समय के साथ इस एक ईश्वर को कई हिस्सों में बाँट दिया गया...ईश्वर के इस बँटवारे ने सारी धरती को कई-कई टुकड़ों में बाँट दिया.
और फिर वही वरदान जो इंसान को इंसान बनाने के लिए आकाश से ज़मीन पर उतारा गया था...अलग-अलग दुकानों में सजाकर तिजारत बना दिया गया.
तिजारत
इस तिजारत ने वह मुसीबत फैलाई कि हज़ारों समाज फिर से बस्ती से निकलकर जंगल की ओर जाने लगे.
भारत का विभाजन इसी ईश्वर के ग़लत इस्तेमाल का नतीजा था. जो आज़ादी से अब तक एक नासूर की तरह रिस रहा है और न जाने कब तक यूँ ही रिसता रहेगा.
पहले एक ईश्वर को कई नामों से पुकारा जाता था. कोई उसे ख़ुदा के नाम से जानता था, तो कोई उसे गॉड के नाम से पहचानता था.
लेकिन हर धर्म में उसके नाम भले ही अलग-अलग हों, वह हर रूप में भेदभाव की सीमाओं से दूर था.
हिंदू धर्म में वह कण-कण में व्याप्त था, इस्लाम में वह तमाम आलमों का रखवाला था, बाइबल में जब प्रकाश को जागृत होने का आदेश दिया गया था तो वह रोशनी सारे संसार के लिए थी.
नानक ने एक ही नूर से सारे जग के उपजने की सीख दी थी और कबीर दास ने उस तक पहुँचने के लिए ढ़ाई अक्षर प्रेम की सलाह दी थी.
मुसीबत
मगर इन सारे पावन ग्रंथों और महान आत्माओं की नसीहत पर तिजारत हावी होती गई और दुनिया जीने वालों के लिए मुसीबत होती गई.
इस मुसीबत को किस्से कहानियों और कविताओं के रूप में वर्षों से शब्दबद्ध किया जा रहा है, मगर फिर भी यह मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही
नानक ने एक ही नूर से सारे जग के उपजने की सीख दी थी और कबीर दास ने उस तक पहुँचने के लिए ढ़ाई अक्षर प्रेम की सलाह दी थी.
मुसीबत
मगर इन सारे पावन ग्रंथों और महान आत्माओं की नसीहत पर तिजारत हावी होती गई और दुनिया जीने वालों के लिए मुसीबत होती गई.
इस मुसीबत को किस्से कहानियों और कविताओं के रूप में वर्षों से शब्दबद्ध किया जा रहा है, मगर फिर भी यह मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही.
दोहा लिखने के बाद मुझे लगा, बच्चा वाकई नादान था. उसकी नादानी ने मुझे भी अनजान बना दिया था. मैं बच्चों की आखों में हैरत देखकर भूल गया था कि ईश्वर के पास आने वालों की संख्या ज़्यादा होती है. किसी को धंधे में कामयाबी चाहिए. किसी को घर में हँसता-खेलता बच्चा चाहिए, किसी फ़िल्म निर्माता को फ़िल्म की सफलता चाहिए. सबको कुछ न कुछ चाहिए. इसलिए सबके लिए बड़े घर की आवश्यकता होती है.
बहुत से ऐसे काम जिन्हें वह ख़ुद करता है, और जिसका जिम्मेदार भी वह ख़ुद है. उनके लिए भी वह ख़ुदा का ही दरवाज़ा खटखटाता है. और वक़्त बेवक़्त उसे सताता है. चोर भी चोरी करने से पहले उसी को आवाज़ लगाता है.
डेनियल डिफो के मतानुसार, "जहाँ भी ख़ुदा अपना घर बनाता है उसी का पैदा किया हुआ शैतान भी वहीं करीब ही अपना छप्पर उठाता है." शैतान के पुजारियों की गिनती ईश्वर के उपासकों से हमेशा अधिक होती है. उसकी अपनी जगह जब छोटी पड़ती है, तो वह ख़ुदा के आँगनों में घुस आता है. ख़ुदा शांति प्रिय होता है. शैतान की इस हटधर्मी से टकराने के बजाए वह ख़ामोशी से अपना स्थान छोड़ कर किसी और जगह चल जाता है. सवाल उठता है, ख़ुदा के हाथ में तो सब कुछ है वह शैतान को ख़त्म क्यों नहीं कर देता? जवाब है ऐसा करने में उसके संसार की रंगीनी भी समाप्त हो जाएगी. रामायण से रावण को निकाल देने से, और आदम-हव्वा की कथा से शैतान को अलग कर देने से, इन पावन ग्रंथों की पूर्णता में अपूर्णता झाँकने लगेगी, डॉक्टर इक़बाल ने अपनी एक कविता में इस ओर इशारा भी किया है- इस में शैतान इंसान से कहता है,
गर कभी खिलवत (तन्हाई) मयस्सर हो तो पूछ अल्लाह सेकिस्स-ए-आदम को रंगीं कर गया किसका लहू
बाइबिल और कुरान में आदम को जन्नत से निकाले जाने की वजह शैतान को ही करार दिया गया है. पिछले कई सालों से, शैतान, जिसके नाम भाषा और ठिये उतने ही हैं जितने ख़ुदा के हैं. कुछ ज़्यादा ही फैलने लगा है. कहीं-कहीं तो उसके आतंक से, स्वयं ख़ुदा भी, जो बच्चों की मुस्कुराहट सा सुंदर है, माओं के चेहरों की जगमगहट सा आकर्षक है, गीता, कुरान, बाइबिल आदि की सजावट सा हसीन है, ग़मगीन और असुरक्षित जान पड़ता है.
उठ-उठ के मस्जिदों से नमाज़ी चले गएदहशतगरों के हाथ में इस्लाम रह गया
कट्टरपंथियों ने इस शेर पर विवाद खड़ा कर दिया था. लेकिन इस हक़ीकत से इंकार करना मुश्किल है कि वह अयोध्या हो, पंजाब में गोल्डन टेम्पल हो या आज के पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में लाल मस्जिद हो, ख़ुदा, राम या वाहगुरू कहीं भी महफूज नज़र नहीं आता.वह स्वयं अब अपनी हिफाज़त से दुखी दिखाई देता है.
लेकिन ख़ुदा सबकी ज़रूरत है. वह मुहब्बत की तरह खूबसूरत है. शैतान से भगवान को बचाने के लिए सूफी-संतों ने एक रास्ता सुझाया था और उन्होंने ख़ुदा को ईंट-पत्थरों के मकानों से निकालकर अपने दिलों में बसाया था. महात्मा बुद्ध के कई सौ साल बाद एक भिक्षु एक बर्फीली रात को जंगल में था, उसे दूर थोड़ी सी रौशनी दिखाई दी, उसने वहाँ जाकर दस्तक दी, आश्रम का द्वार खुला, भिक्षु को अंदर लिया गया और आश्रम का सेवक उसके लिए भोजन तैयार करने चला गया. जब भोजन लेकर वह वापस आया तो उसे यह देख कर गुस्सा आया, बुद्ध की काठ की मूर्ति जल रही है और भिक्षु उस पर हाथ ताप रहा है, सेवक ने क्रोध से कहा यह क्या अधर्म है, भिक्षु ने उत्तर में कहा, "मेरे अंदर जीवित महात्मा को सर्दी लग रही थी, इसलिए लकड़ी की प्रतिमा को आग बना दिया."
इंसान में भगवान का सम्मान ही संत की पहचान है. और जब ख़ुदा दिल में मिल जाता है तो दिल्ली के सूफी निजामुद्दीन का कौल याद आता है,
एक मुद्दत तक मैंने काबा (मक्का का पावन स्थल) का तवाफ़ (चक्कर) किया
मगर अब काबा मेरा तवाफ़ करता है.

1 comment:

muskaan said...

Good one.....bt still made me laugh as everyone knows this.talks about this and still behaves like this..God.....A threee letter word which is used as per our conveniency...but i appreciated that u tried to put it in a better way.......