Sunday, September 26, 2021

वक़्त

वक्त गतिशील है, डायनामिक है. यह हम सब मानते हैं, जानते हैं. 
पर यह अपने घेरे में घूमने वाला सर्कुलर मोशन है या लीनियर (जो कभी वापस अपने बिंदु पर वापिस नहीं आएगा). 
मुझको तो सर्कुलर ही लगता है. यह बात अलग है कि, सर्किल कितना बड़ा है? 
"मगर ऐसा लगता है कि रिपीटेंस तो है."
वीर को फीवर है... सुनते ही मैं घर वापस आ गया था.
ताप अधिक होने पर यह लल्लू लाल अनर्गल सा बर्ताव करने लगता है. हमारा प्रयास होता है कि क्रोसिन और ठंडे पानी की पट्टियों से उसका फीवर ज्यादा ना बड़ने पाए.
देर रात उसके सर पर पट्टियां बदलते हुए मैं एक किरदार निभा रहा था. वही किरदार जो कुछ दसियों साल पहले मैंने डैडी को निभाते देखा और महसूस किया था. बस वीर की जगह मैं और मेरी हथेली की जगह  डैडी की हथेली थी.
उन्हीं दसियों साल पुराने शब्दों और एहसासों को, मैं अगली पीढ़ी को ट्रांसफर कर रहा था.

"पापा चिंता मत करो मैं ठीक हूं." वीर के इन शब्दों ने मुझे मेरी टाइम यात्रा से बाहर निकाला.
पता नहीं क्यों लोग टाइम मशीन को फिक्शन का भाग मानते हैं? मुझे तो लगता है यह हम सब के अंदर बाय डिफॉल्ट built-in है.
कल ही की तो बात लगती है जब सन 2009 के बसंत में गंगा राम हॉस्पिटल के अंदर डैडी की एंडोस्कोपी हो रही थी. अटेंडेंट में साइन मेरे थे. अभी कुछ दिनों पहले वीर की एंडोस्कोपी हुई और फिर अटेंडेंट वाले कॉलम में मेरे साईन थे. 
पहले पिता और अब बेटा, कभी-कभी तो लगता है कि वीर के नाम पर डैडी ही अपनी अधूरी जिंदगी जी रहे हैं...

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