अब आपके मन में चल रहा है कि क्या बोल रहा है यह गधा ?
इसको ना GDP का पता ना CRR का क्या जाने ECONOMY का ?
चलिए कुछ *गंदी बात* करते हैं (एकता कपूर वाली नही)
गंदी से मेरा कहने का मतलब है गैर-परिष्कृत.
जो लोग कस्बों में पैदा हुए हैं उनको पता होगा कि लगभग 20-25 साल पहले लोग वॉशरूम नहीं जाते थे,टट्टी जाते थे. फिर लैट्रिन जाना शुरू हुए कुछ अरसा पहले वॉशरूम या रेस्ट रूम, और अब WC.दोस्तों शब्द तो परिष्कृत होते गए क्या मूल मुद्दा या ITEM भी बदला ??
बिल्कुल यही अंतर है जरूरत और इकोनॉमिक्स का. आडंबर बढ़ते गए पेड़ के पत्ते से पानी और लोटे से जेट पंप हैंड शावर और टॉयलेट पेपर तक, सब बदलते गए. याद रखिए मूल मुद्दा वही था साफ करना.
याद है??
सबने पढा था बार्टर सिस्टम.
भाई मेरे पास गेहूं है पर सब्जी नहीं तू सब्जी दे दे, मैं गेहूं देता हूं. मै नाई हूं तू बढई. मै बाल काट दिया करूगा तू मेरा लकड़ी का काम कर दिया कर.
एक दूसरे की जरूरत पूरी करने की व्यवस्था.
धीरे-धीरे उत्पादन बढ़ा और यहीं से आना शुरू हुआ अंतर. बड़े हुऐ उत्पादन को संग्रह करने की जरूरत ने भंडार गृह पैदा किए, और यही से समानता ने असमानता की तरफ बढ़ना चालू किया होगा.
आदान-प्रदान से व्यवस्था बदल कर आनाज से भुगतान की तरफ पर चली थी. समाज पत्ते से पानी यानी लोटे की तरफ चल पड़ा था.
मुद्रा के प्रचलन में आने के बाद एक नया वर्ग पैदा हुआ व्यापारी. इसने संग्रह किया हुआ माल खरीदा और जहां इस सामान की कमी होती थी वहां नफा लेकर बेचा. अब राज्य भी संगठित होना शुरू हो गया था. उसको भी मुद्रा का चस्का लग चुका था. राज्य की सम्पन्नता और नगर सेठों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई थी. लोटे में केवड़ा और गुलाब अर्क डालना शुरू हो गया था यहीं से लोटे और लोटे में अंतर आना भी शुरू हो गया था. अब संपन्नता को सुरक्षा की जरूरत थी.ज्क्हिए थी जीवन की आग से पानी से जानवरों से परंतु अब सुरक्षा की दरकार थी असमानता से. राज्य को अपनी संपत्ति, एशो आराम, अय्याशी को सुरक्षित रखने की जरूरत थी.
अब अर्थव्यवस्था उत्पादन आधारित से आगे बढ़ गई थी. यह अब खपत Consumption आधारित हो चुकी थी.
व्यापारिक घरानों के पास सामान था गोदाम भरे हुए थे बेचना जरूरी हो गया था. तो अब उधार ले लो की शुरुआत हुई. ब्याज की शुरुआत हुई. समान की जगह मुद्रा/पैसा बिकना शुरू हुआ. अब यह व्यवस्था खपत consumption से वित्त finance आधारित हो चली थी. इसके key words थे loan, insurance, shares, डिवेंचर, banking. *जरूरत अब COMMODITY बन चुकी थी.* सब डिजिटलाइज हो रहा था. दसवीं मंजिल पर w.c. में बैठा आदमी लौटे की जगह जेट पंप, toilet paper या हैंड शावर इस्तेमाल कर रहा था. अचानक प्रकृति की गोद से कोरोना नामक विषाणु निकला और लोगों को घरों में बंद कर दिया. खपत कम हो गई,यह अर्थव्यवस्था वापस जरूरत के सामान पर आ गई. टॉयलेट पेपर की लूट हो रही थी. टॉयलेट पेपर की कमी थी मगर, जरूरत टॉयलेट पेपर की नहीं सफाई की थी. टॉयलेट पेपर की तो सिर्फ आदत थी.
आज की ये अर्थव्यवस्था, जरूरत की नहीं, आदत की अर्थव्यवस्था है...
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