एकीकृत पंजाब के गुज़रावाला मे है मेरे परिवार की जड़े।
परदादा लाला मथुरादास मेहता ने अपने सबसे बडे बेटे(यानि मेरे दादा)को सिख बनाया, नाम दिया सरदार स्वरूप सिंह मेहता। बाकी तीनो छोटे भाई सहजधारी रहे।दादी का नाम था सरदारनी राजेन्द्र कौर मेहता।
क्या यह एक परिवार था, या कुछ हिन्दू और कुछ सिख थे ?
1947 मे विभाजन हुआ, दंगे हुए।
गैर मुसलमान होने की वज़ह से लुटे भी, पिटे भी, जान के लाले भी पड़े।
500 एकड़ भूमि पर कृषि करने वाला परिवार शरणार्थी बना।
जाने कैसे जा पहुंचा यह परिवार भिण्ड(मध्यप्रदेश)।
शून्य से मेहनत की और फिर परिवार सम्पन्न हुआ।
अब बारी थी 1984 की, फिर बारी थी दंगो की, लूट की,मारने की, जलाने की...फिर से शरणार्थी होने की। किस्मत अच्छी थी जान बची।
आखिर मेरी पहचान क्या है?
हिन्दू या सिख ?
मै तो कोई अन्तर ही नही कर पाता।
बचपन से घर मे ओम जय जगदीश हरे.... और सतनाम करता पुरख....दोनो का रस लिया है।
पंजाब मे एक हिन्दू नेता की हत्या की खबर ने मेरे ज़ख्म फिर हरे कर दिए है।
दादा जी यानि सरदार स्वरूप सिंह मेहता सिर्फ़ उर्दु ही पड़ पाते थे(सुखमनी साहिब व अन्य गुटके भी उर्दू के ही पड़ते थे)और दादी सिर्फ गुरमुखी। ऊपर से मेरी माँ यानि सरदारनी दादी की कृष्ण भक्त बहू। मगर घर मे तो कभी दंगे नही हुए। न भाषा पर ना धर्म पर।
Saturday, May 30, 2020
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