Saturday, May 30, 2020

बजरंगबली

आजकल मेट्रो से आना जाना हो रहा है. पार्किंग वगैरा की झंझट से मुक्ति. मेन मार्केट से गुजरते हुए बड़े मजेदार अनुभव हो रहे हैं. अक्सर वापसी शाम 7:30 के आसपास होती है. मार्केट में ही मंदिर है और वहां संध्या आरती की आवाज अक्सर सुनने को मिलती है.
ओम जय जगदीश हरे... मंदिर छोटा सा है.बाहर लिखा है 1948 में स्थापित. मुख्य द्वार के ठीक ऊपर चिर परिचित अंदाज में हनुमान जी उर्फ वीर बजरंगी उर्फ बाल ब्रह्मचारी अपनी लंगोट में, हाथ में गदा धारण किए हुए विराजमान हैं.
जीवन भी बड़ा मजेदार है. एकाकी रूप में देखने में चीजें अलग भाव देती हैं. और जब उनको एक दूसरे के साथ रखकर देखा जाता है तो क्लाईडोस्कोप बन जाता है. ब्लैक एंड व्हाइट चित्र रंगीन हो जाता है. ऐसा ही कुछ हमारे बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी की मूर्ति के साथ है.
मंदिर के ठीक सामने कई दुकानें हैं और स्वाभाविक रूप में महिला ग्राहकों का विशेष ध्यान है
झीने-झीने कपड़ों में लिपटे बुत आकर्षित करते हैं. ऊपर वाला तो सभी बलाओ को अलग-अलग बनावट देता है.परंतु ये बुत तो आदमी की कल्पना में परफेक्ट फिगर का रूपांतरण है.लाइन से काले/ गोरे/स्टील फ्रेम के बुत और उन पर झीने-झीने कपड़ों के आवरण चाहते और न चाहते हुए भी कुछ नहीं छुपा पाते.
बगल वाली दुकान की विंडो तो भावनाओं का ज्वार पैदा करने के लिए ही शायद खुली है. विंडो में बुतों के ऊपर बेहतरीन अंतः वस्त्र (आजकल के लफ्जो में लॉन्जरी) आपको कल्पनाओं में ले जाने के लिए काफी है.
आज इन बुतों पर पिंक कलर कहर ढा रहा था. कल काले रंग का जलवा था. उससे पहले फिरोजी और पहले सब लाल ही लाल था. अब तो शाम को जाते हुए मन में कौतूहल होता है कि आज कौन सा रंग या कौन सा ढंग होगा?
बेचारे बाल ब्रह्मचारी की मूर्ति ठीक इन नुमाइशई बुतो के सामने हैं. आंखें भी ठीक इधर ही लगती है. वे है भी मंदिर के द्वार के ऊपर तो ज्योमेट्री के मुताबिक आदर्श कोण पर स्थापित है.
रोज बदलते रंग ढंग और एक टक स्थापित बजरंगी की निगाहें, मन को रोज गुदगुदाती है.जहन में शरारती विचारों को पैदा करती हैं. अब तुम्हारा क्या होगा बजरंगबली?यह तो कलयुग है.
मगर बजरंगबली हैं कि स्थिर है, स्थापित हैं, बुत हैं और बुतों की और ही देख रहे हैं. दोनों ही बुतों में जीवन हमारी भावनाएं ही दे रही हैं.

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